दुखों की छाया में यह भव बसा है, नियति की सदिच्छा होगी तो कुछ दिन कटेंगे, समय के सधे आयामों में। भ्रम भ्रम रहेगा कि सच का कभी पल्ला लेगा; श्वसन ठहरेगा विजन में।
हिंदी समय में त्रिलोचन की रचनाएँ